• Login
    View Item 
    •   Institutional Repository @University of Calicut
    • Hindi
    • Doctoral Theses
    • View Item
    •   Institutional Repository @University of Calicut
    • Hindi
    • Doctoral Theses
    • View Item
    JavaScript is disabled for your browser. Some features of this site may not work without it.

    इक्कीसवीं शती की हिंदी कहानियों में किन्नर विमर्श

    Thumbnail
    View/Open
    SANOJ P. R. Ph.D Thesis.pdf (2.086Mb)
    Date
    2022-10-01
    Author
    सनोज पी.
    Sonaj P.
    Metadata
    Show full item record
    Abstract
    सानहत्य जगत मे वतशमाि युग नवमशों का है l इस समय अिेक नवमशश सानहत्य में अपिा स्थाि बिा रहे हैं l हहिंदी सानहत्य मे नपछले कई सालों से सबाल्टिश पर नलखता जा रहा है l गायत्री चक्रवती स्पीवाक िे अपिे लेख ‘Can Subalten Speak’ में हानशए पर गये लोगों के नलये आवाज़ उठायी l सिंपूर्श सानहत्य जगत् में इक्कीसवीं शताब्दी में हानशएकृ त लोगों को कें द्र मे रखकर अपिे नवचारों को प्रस्तुत ककया है l नवमशों के दौर में अिेक नवमशश सामिे आए जैसे दनलत – नवमशश , स्त्री – नवमशश , आकदवासी – नवमशश , वृद्ध – नवमशश , ककन्नर – नवमशश , जीव – नवमशश , ककसाि – नवमशश , एविं नवकलािंग – नवमशश आकद l इि सभी नवमशों में एक उभयनिष्ठ मुद्दा है , नजसमें अनिकारों की मााँग है l अपिे अनिकारों के नलए व्यनि सिंघर्शरत है और सानहत्य , सड़क तथा सिंसद में अपिे अनिकारों के नलए लड़ रहा है l समाज के अिेक जागरूक व्यनि , कलाकार , नचत्रकार , पत्रकार एविं रचिाकार जैसे अनत – बोनद्धक व्यनि भी ऐसे दबे – कु चले , उपेनित , नतरस्कृ त और बनहष्कृ त व्यनियों के नलए समाज में अपिी कला के माध्यम से जागरूकता फै लािे का प्रयत्न कर रहे हैं नजससे उि बनहष्कृ त समाज को मािवीय अनिकार नमल सके , उिके सिंवेदिाओं की रिा हो सके l उिको भी इिंसाि की तरह जीिे का अनिकार आम िागररकों की तरह नमल सके l शोि नवर्य को सुनविा कक दृनि से मैंिे उपसिंहार सनहत पााँच अध्यायों में नवभानजत ककया है l प्रथम अध्याय : नवमशश के नवनवि आयाम दूसरा अध्याय : ककन्नर : अथश , आशय एविं अविारर्ा तीसरा अध्याय : हहिंदी सानहत्य मे ककन्नर समाज चौथा अध्याय : इक्कीसवीं शती कक हहिंदी कहानियों में ककन्नर नवमशश पााँचवािं अध्याय : उपसिंहार प्रथम अध्याय : नवमशश के नवनवि आयाम प्रथम अध्याय ‘नवमशश के नवनवि आयाम’ के िाम से है l इस अध्याय में नवमशश , उसका अथश द्वारा नवनभन्न नवद्वािों द्वारा पररभानर्त करिे का मूल्यािंकि ककया गया है नजससे नवमशश कक अविारर्ा को समझा जा सके l वतशमाि समय में प्रचनलत नवमशों का भी उल्लेख ककया गया l उिके प्रमुख लेखक (रचिाकार) तथा उिकी कृ नतयों को भी नवर्य में बताया गया है कक उि रचिाकार िे अपिे सानहत्य सृजि के माध्यम से प्रस्तुत नवमशश कक क्या सेवा कक है l उन्होंिे ककि – ककि मुद्दों को उठाया है जैसे स्त्री – नवमशश मे आिीआबादी के उि प्रश्नों को उठाया गया है नजिसे स्त्रीयों का प्रत्यि रूप से सिंबिंि है आज भी उिको दोयम दजे का समझा जाता है क्योंकक समाज में नपतृसत्तात्मक समाज का बोलबाला है जो उिको समािता का अनिकार िहीं देिा चाहता है l ऐसे ही आकदवासी , दनलत , वृद्ध – नवमशश , ककसाि – नवमशश , ककन्नर नवमशश जैसे अिेक नवमशों में समािता के अनिकार कक बात कक गयी है l मािसककता में बदलाव के प्रश्नों को मजबूती से उठाया गया है नजससे समाज सही अथों में सभ्य बि सके और सब के नहतों कक रिा हो सके l दूसरा अध्याय : ककन्नर : अथश , आशय एविं अविारर्ा नद्वतीय अध्याय ‘ककन्नर : अथश , आशय एविं अविारर्ा’ के सिंदभश में है नजसमें समाज : लैंनगकता , उसके प्रकार तथा एल. जी. बी. टी. क्यू. ए.एई. समुदाय का वर्शि नमलता है l मिुष्य कक उत्पनत्त ककसी भी भेदभाव एविं असमािता से अलग है l जब मिुष्य कक उत्पनत्त हुई तब स्वयिं के जीवि सिंचालि के नलए समाज बिा l समाज के नबिा मिुष्य का अनस्तत्व ही िहीं है l वह समाज से ही सीखता है तथा समाज में ही रचता है और बसता है l मिुष्य िे अपिे अनस्तत्व को बचाए रखिे के नलए प्रजिि कक प्रकक्रया अपिाई l प्रार्ी का अनस्तत्व अग्रनसत होता रहा l ककन्नर भी उसी प्रजिि प्रकक्रया के अिंग के रूप में नवद्यमाि है l नजिकी नस्थनत प्राचीि तथा मध्यकाल में सम्मािजिक रही है l लेककि आिुनिक दौर आते – आते इन्हें उपेिा कक दृनि से देखा जािे लगा l मुख्यिारा के लोगों िे इिसे मुाँह मोड़िा शुरू ककया तब काफी समय बाद बुनद्धजीनवयों िे इन्हें मुख्यिारा से जोड़िे का कायश ककया l मगर आज इिके ऊपर हो रहे अत्याचारों को बखूबी समझा जा सकता है l आज के समय में अपिी लड़ाई स्वयिं लड़ी जाती है l इसीनलए इन्हें अपिे अनिकार कदलािे के नलए सिंघर्शशील रहिा होगा l इस अध्याय में सेक्स , जेंडर और लैंनगकता के अिंतर समझाया गया है l ककन्नरों के प्रनत समाज की जो अविारर्ा है वह बहुत दयिीय है क्योंकक भारतीय समाज आज भी नपतृसत्तात्मक है l वहााँ अनिकतर हबिंदओं को अपिी अनस्मता और इज्ज़द से जोड़कर देखा जाता है जबकक ऐसा िहीं है क्योंकक उिकी दृनि प्रारिंभ से ही ककन्नरों के प्रनत ऐसी बिा दी गयी है नजससे परोि रूप से इस समाज की अनस्मता का दोहि होता है l ककन्नर के अिेक रूपों उिके प्रकार के बारे में समाज में बहुत ककिं वदिंनतयािं चलती है नजसको अफवाह भी कहते हैं l ककसी भी ककन्नर को देखकर पहला प्रश्न मिुष्य के मनस्तष्क में यही आता है कक उि व्यनि असली ककन्नर है या िकली ककन्नर इसीनलए ककन्नरों के मुख्या रूप से जो चार प्रकार होते हैं उिके अिंतर को बताया गया है तथा उिकी पहचाि के नलए जो नियम होते हैं उसका नवस्तृत वर्शि ककया गया है l ककन्नर जीवि कक जो नवसिंगनतयााँ , नवकृ नतयााँ तथा जो पररर्ाम दृनिगत हो रहे हैं उिको भी स्पिता बताया गया है नजससे ककसी भी प्रकार कक भ्ािंनत ि हो और ककन्नरों के अनिकारों को नििाशररत करिे में सरकारों को कोई करठिाई ि हो l अक्सर ककन्नर समाज कक ऐनतहानसकता पर प्रश्न उठता है जबकक इिका वर्शि भारतीय वाग्मय के प्राचीि ग्रिंथों में नमलता है , मुगलकाल में दृनिगत होता है तथा निरटश राज्य में इिकी जो नस्थनत बिायी गयी थी उसका भी वर्शि ककया गया है l ककन्नर समाज के रीनत-ररवाज़ों का वर्शि भी समग्रता से ककया गया नजससे उिकी सिंस्कृ नत और सिंस्कार का भी पता चल सके l ककन्नर समाज की समस्याओं के सिंदभश में भी एक नवस्तृत चचाश का उल्लेख ककया गया है l ककन्नर समाज को कािूिी तौर वतशमाि में क्या – क्या सुनविायें मुहय ा कराई गयी है उसका भी वर्शि ककया गया है l तीसरा अध्याय : हहिंदी सानहत्य मे ककन्नर समाजतृतीय अध्याय ‘हहिंदी सानहत्य में ककन्नर समाज’ इस िाम से उद्िृत ककया गया है नजसमें सानहत्य कक मुख्या नविाओं मे से ककन्नर समाज का जो वर्शि नमलता है उसको रेखािंककत ककया गया है l जैसे हहिंदी उपन्यास में ककन्नर जीवि के सिंदभश में वतशमाि में उपलब्ि सभी उपन्यासों को नवनस्ततृ चचाश की गयी है l हहिंदी िाटक में ककन्नर जीवि में अब तक दो िाटक नमलते हैं इसका नवश्लेर्र् ककया गया है l ककन्नर आत्मकथा को भी आिार बिाकर उिकी समस्याओं को रेखािंककत करिे का प्रयास ककया गया है की वह ककस प्रकार पररवार छोड़कर अपिा जीवि व्यतीत करते हैं l समाज कक उलाहिा को सहते हैं l कफर भी जीवि व्यतीत करिे का प्रयत्न अपिे आत्मसम्माि के साथ करते हैं l अिंत में ककन्नर कनवताओं में उिके जीवि पर दृनिपात ककया गया है कक इस मुख्य नविा में ककन्नरों का जीवि ककस प्रकार चल रहा है , क्योंकक कनवता ककसी भी पीड़ा को दो पिंनियों में बयाि कार देती है l चौथा अध्याय : इक्कीसवीं शती कक हहिंदी कहानियों में ककन्नर नवमशश चतुथश अध्याय ‘इक्कीसवीं शती की हहिंदी कहानियों मे ककन्नर नवमशश’ मुख्य अध्याय के रूप में है नजसमें मािवशास्त्र और मािवतावाद का वर्शि नमलता है कक ककस प्रकार समयािुसार मािवतावाद के प्रनतमाि बदल गए है , िज़ररया पृथक हो गया है , ककन्नर कहानियों में ककन्नरों कक नवनभन्न समस्याएाँ उिका सिंघर्श तथा समाज के दोहरे आचरर् का भी वर्शि ककया है । ककन्नर कहानियााँ लगभग पचहत्तर हैं । उि सभी कहानियों में अलग – अलग नवर्यों को आिार बिाकर रचा गया है l कु छ कहािी िार्मशक रूकियों को उजागर करती है l यह कहानियों के ममश पर निभशर करता है कक कथाकार पाठक को कौि सी ियी दृनि देिे का प्रयास कार रहा है l यह अध्याय ककन्नर – नवमशश पर सृनजत सभी कहानियों का तथ्यात्मक अध्ययि करता है l पााँचवािं अध्याय : उपसिंहार अिंनतम अध्याय उपसिंहार है नजसमें चारों अध्यायों के निष्कर्ों को आिार बिाकर अपिा सुझाव को नलखा गया है । अिेक कहानियों के माध्यम से कहािीकारों िे ककन्नरों की समस्याओं एविं सुझावों की ओर ध्याि इिंनगत करिे का महती कायश ककया है नजसमें नशिा , रोजी-रोटी , कपड़ा मकाि के अलावा सामानजक भेदभाव के नलए भी सिंघर्श गाथा को देखा जा सकता है l इस बनहष्कृ त वगश का अपमाि समाज में हर प्रकार से ककया जाता है नजसका निवारर् सरकार की िीनतयों एविं सामानजक जागरूकता से ही ककया जा सकता है l ककन्नर समुदाय िे अिेक करठिाईयों , सिंघर्ों एविं बनहष्करर् को झेला है और वतशमाि में भी समाज को सहिा पड़ रहा है क्योंकक उसका सीिा कारर् है समाज में मािवता के नलए अपररपक्वता , समािता जैसे शब्दों की प्रासिंनगकता शून्य है l इस ककन्नर समाज का जीवि बचपि से ही करठिाईयों और सिंघर्ों से भरा होता है कफर भी अपिी श्रमशीलता के बल पर ये इस समाज में उत्कृ ि काम कर जाते हैं जो इस वगश के नलए उदाहरर् बि जाते हैं lआज हहिंदी कहानियों में ककन्नर नवमशश एक आिंदोलि का रूप नलया है l ककन्नरों को प्रमुख िारा में लािे कक दृनि से इस आिंदोलि कक निनित ही उल्लेखिीय भूनमका रहेगी l
    URI
    https://hdl.handle.net/20.500.12818/888
    Collections
    • Doctoral Theses [25]

    DSpace software copyright © 2002-2016  DuraSpace
    Contact Us | Send Feedback
    Theme by 
    Atmire NV
     

     

    Browse

    All of DSpaceCommunities & CollectionsBy Issue DateAuthorsTitlesSubjectsThis CollectionBy Issue DateAuthorsTitlesSubjects

    My Account

    LoginRegister

    DSpace software copyright © 2002-2016  DuraSpace
    Contact Us | Send Feedback
    Theme by 
    Atmire NV